Friday, February 11, 2011

क्या बोया , क्या पाया, क्या खोया ............?

क्या बोया , क्या पाया, क्या खोया ............?

बीत गयी ज़िन्दगी तीन चौथाई

फिर भी समझ नहीं पाया इसको

क्या बोया , क्या पाया, क्या खोया ?

बहुत कुछ बोया, बहुत कुछ पाया, बहुत कुछ खोया...............!

बचपन खो गया, जवानी के इंतज़ार में

जवानी खो गयी, सब कुछ पा लेने की आस में

और आज......?

खड़ा हूँ उम्र की उस दहलीज़ पे, जिसे सब बुढापा कहते हैं

पीछे मुड़ कर जब भी देखता हूँ

आती और जाती रहती है ...............!

एक एक तस्वीर मानस पटल पे

पर, कुछ भी ठहर नहीं पाता................!

और फिर........?

मैं रह जाता हूँ, अकेला, उसी चिंतन में .....................!

क्या बोया, क्या पाया, क्या खोया...............?

अजीब सी बीडिम्बिना है ?

आखिर क्या है नियति इस ज़िन्दगी की ?

धन, दौलत, यश, नाम या प्रसिद्धी ?

पर इनका तो कोई अंत है नहीं

वही प्रश्न यक्ष की तरह बार बार कुदेरता रहता है...............?


क्या बोया, क्या पाया, क्या खोया................?

तो फिर .............?

बंद मुठ्ठी आया था अकेला इस संसार में

खाली हाथ पसारे जाऊंगा अकेला इस संसार से

अब तो यही लगता है,

क्या सब कुछ पाया, बस खोने को ?

ईश्वर.................?

हाँ एक वही तो साथ रहता है सदा

वह तो हमेशा से मेरे ही अन्दर विद्यमान है ...!

पर क्यों देर कर दी मैंने उसे पाने में ?

क्यों नहीं मैं तलाश सका उसे. सारी ज़िन्दगी ..............!

और अब

इस बची हुई एक चौथाई ज़िन्दगी में ................?

तलाश करने की कोशिश करता हूँ उसे...................?

पर

यह शरीर......? साथ नहीं देता.........!

यह तो बूढा हो गया है .............!

हर वक्त किसी न किसी बीमारियों से ग्रसित ?

किसी न किसी दर्द से घिरा रहता है ये शरीर ?

या यूं कहें की दर्द ही अब ज़िन्दगी बन कर रह गयी गयी है.!

ध्यान लगाने की कोशिश हर वक्त करता हूँ.............!

तलाश करने की कोशिश करता हूँ ...................!

ईश्वर को पा लेने की................?

पर कहाँ...?

सारा ध्यान तो दर्द की ओर ही लगा रहता है ..............!

कहीं यही दर्द इश्वर तो नहीं बन कर सदा मेरे साथ रहता है ?

क्या होगा इस ज़िन्दगी का...........?

क्या वही एक और अंत...............?
















Saturday, September 18, 2010

!............."काश होता मैं"............!

!............."काश होता मैं"............!

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काश ! होता हर पल मेरा

बारिश की हर एक बूँद

टपकता रहता बिना किसी चाह के

खोता रहता धरती की गोद में !

काश ! होता मैं उस गुलाब की तरह

किसी बगिया में फूलों के बीच

बिखेरता रहता अलग रंग अपना

और खोता रहता सूरज की रोशनी में !

काश ! होता चीड का दिल मेरा

काश्मीर की वर्फीली वादियों में

खड़ा, मजबूत, अडिग, अटल

फिर खो जाता वर्फ की सुनहरी गोद में !

काश ! होता मैं आकाश में

टिमटिमाते हुए इक तारे की तरह

बिखेरता रहता प्यार का प्रकाश सदा

खो रहता बस यूं ही प्यार और बस प्यार में ! !

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Thursday, September 16, 2010

हे इश्वर !

हे इश्वर !

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सूर्य की पहली किरण के साथ

उठता हूँ हर सुबह जब मैं, साथ रहता है हर वक्त मेरे तू

हे इश्वर ! बड़ा दयालू है तू

करता रहता है मार्ग प्रशस्त, दया और प्यार का सदा

पर........!

बड़े अभागे हैं हम

देख नहीं पाते करुणा भरे तेरे ये हाथ

फिर.........!

भी झेलता रहता है तू हमें सुख दुःख घ्रीणा, क्रोध और इर्ष्या में सदा

हे इश्वर !

सूर्य की रोशनी से किया दूर अँधेरा, चाँद की रोशनी में दी शीतलता

टिमटिमाते जगमगाते तारें की रोशनी से

फिर

भी करता रहा मार्ग प्रशस्त न्याय और शांति का सदा

हे इश्वर !

हैं आभारी हम तेरे, दिया ये जीवन जो है तेरा

हैं ऋणी हम तेरे जो लुटाता रहता है प्रेम सदा

हे इश्वर !

तेरा ये करुणा भरा हाथ मुझ पे रहे यूं ही सदा

मैं भी बढ़ाऊँ हर वक्त अपना हाथ औरों की ओर तेरी तरह सदा

तेरी तरह सदा....! तेरी तरह सदा.........! तेरी तरह सदा...........!

“मैं समुद्र हूँ,


समुद्र क्या कहता है ? और फिर मैं समुद्र को किस नज़रिए से देखता हूँ, दोनों का समावेश है इस छोटी सी कविता में...............!

“मैं समुद्र हूँ,

“मैं समुद्र हूँ, शांत, सुन्दर, समुद्र जो ठंडक पहुंचाता हूँ,

पर

अफ़सोस, कोई देख न पाया मेरे इस दर्द या आँसू को........!

पर,

मैंने देखा है, समुद्र को, इसके दर्द और आँसू को

मैंने समुद्र को देखा है, अपनी प्यास बुझाने के लिए,

जिह्वा को खींच पानी की एक बूँद के लिए तरसते हुए...........!

मैंने समुद्र को देखा है, तलाशते, पास से गुजरते,

उन काले घने बादलों को स्पर्श करने की कोशिश करते हुए.....!

मैंने समुद्र को देखा है,आकाश को चूमते हुए,

आकाश खिलखिलाया, समुद्र मुस्कुराया...!

मैंने समुद्र को देखा है, अपनी हर हदें पार करते हुए,

बेताब, चाँद को स्पर्श करने के लिए...........!

मैंने समुद्र को देखा है, उसके उस उतावलेपन

तुम्हारी आँखों की गहराईओं में

अपनी हथेली में, अपने दिल में,

बस एक ही ख्वाव है अब मेरा,

मैं , तुम, और एक समुद्र,

हो साथ सदा...!

हो साथ सदा...!

Sunday, June 6, 2010

“THE LAST TEEN”

The very fine morning

My wife wished me

“Happy day of our marriage anniversary”

Amazed, Exclaimed, Overjoyed

I with a smile asked

“The Nineteenth one”

Joy disappeared for a moment and,

We,  looked old in our own eyes,

Our children under, teen, were sitting

And playing in front of us

I, then pointing towards them,

Holding her in my arms, said

Look at our teen age kids

Growing young, looking fresh like a flower

Our marriage, too is like them, -

Now growing young, and looking fresh like a flower

Come, Let us celebrate our

"The Last Teen of the Year"

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Copy right reserved,  Lalit niranjan

Year: 1984







Wednesday, June 2, 2010

"सोलवीं गाँठ" ( १३ मई १९८४ )

             "सोलवीं गाँठ" ( १३ मई १९८१ )
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कुछ यादें कुछ पल

वो तारीख वो सन

हर वक्त याद हमें रहता है

पल पल दिल के पास रहता है

वो तारीख तेरह मई उन्नीस सौ पैंसठ की थी

हर ओर उमंग ही उमंग थी, शादी की तरंग ही तरंग थी

सजी सजाये लजी लजाये, घूँगट में तुम मुखड़ा छिपाए

सुर्ख लाल जोड़ों में लिपटी लिपटाए, मेरी आँखों में तुम ही तुम समां रही थी

माता - पिता सगे - सम्बन्धियों के बीच

प्रज्वलित अग्नि की परिधि में पवित्र मंत्रोच्चारण के बीच

बंधते गए हम अटूट बंधन में,

उसी पावन दिवस की है आज वर्ष गाँठ

बंधने को है आज सोलवीं गाँठ

कितने झरने इस बीच बह चुके

दो से चार हो हम चुके I

मेरी शुभकामनाएं करो तुम  स्वीकार

सींचती रहो इस बगियाँ को यूहीं तुम सदा

हंसती और मुस्कुराती रहो यूहीं तुम सदा I


"ललित निरँजन"


                                                               Copy Right © Reserved











Saturday, May 29, 2010

"भगवान भरोसे"

"भगवान भरोसे"
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हैं सभी बातें करते
सामाजिक न्याय की
पर,
असामाजिक तत्वों की साया में I
हैं सभी बातें करतें
धर्मों की,
पर
अधर्मी होकर I
हैं सभी तत्पर
आँसूं पोछने को
पर,
अश्रू गोले छोड़कर I
हैं सभी बातें करतें
रास्ट्र निर्माण की
पर,
रास्ट्र की ही मर्यादा बेचकर I
हैं सभी बातें करतें
 होने की एक
पर,
फैला कर घोर जातिवाद I
हाँ,
लक्ष्य सभी का है एक
भ्रान्ति में रख शासन करने का
क्या है भविष्य इस देश का ?
धर्म, मजहब, घोर जातिवाद, ?
लूट, बलात्कार, और आतंकवाद ?
सब बैठे हैं शायद भगवान भरोसे
पर,
भगवान बेचारा भी है अब लाचार
फिर भी कर रहा है विचार
पुनः लेने को नया अवतार I
तब तक ?
क्या हम रहें  बैठे,
भगवान भरोसे ?
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"ललित निरंजन"